Lakadbaggha Review: सब्जेक्ट के साथ जस्टिस नहीं करती फिल्म ‘लकड़बग्घा’, निराश करती है कहानी

Lakadbaggha Review: लकड़बग्घा एक ऐसी फिल्म है, जिसका कंसेप्ट बिलकुल नया है। जो आवारा कुत्तों के साथ हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाती है। पिछले कुछ सालों में हमारे समाज में आवारा कुत्तों को लेकर विवाद काफी बढ़ गया है। कुत्तों से जुड़े कई दर्दनाक अत्याचार भी आए दिन सुनने को मिलते हैं। वैसे तो फिल्म एक अच्छे कॉन्सेप्ट को ध्यान में रखकर बनाई गई है, लेकिन परफॉर्मेंस के मामले में फिल्म कितनी सफल रही, यह जानने के लिए इस रिव्यू को पढ़ें।

Lakadbaggha Review: The film 'Lakadbagha' does not do justice to the subject, the story disappoints
Lakadbaggha Review: सब्जेक्ट के साथ जस्टिस नहीं करती फिल्म ‘लकड़बग्घा’, निराश करती है कहानी

लेकिन फिल्म के डायरेक्टर सब्जेक्ट के साथ न्याय नहीं कर पाए। इसके अलावा फिल्म में लीड किरदार का एनिमल के प्रति प्यार अच्छे से स्क्रीन पर निखरकर नहीं आता। अगर आप सोच रहे होंगे कि फिल्म में आपको लकड़बग्घा नजर आएगा तो आपको बता दें कि फिल्म में लकड़बग्घा के कुछ ही सीन्स हैं। इसलिए अगर आप यह फिल्म नहीं भी देखेंगे तो आपका कुछ नुकसान नहीं होगा, बाकी आप लोगों की मर्जी।

डायरेक्शन :

फिल्म को डायरेक्ट विक्टर मुखर्जी ने किया है और उनका डायरेक्शन काफी निराश करता है। फिल्म की कहानी अच्छी है लेकिन डायरेक्टर साहब फिल्म को अच्छे से नरेट नहीं कर पाए। फिल्म का स्क्रीनप्ले काफी स्लो और बोरिंग है, खासतौर पर इंटरवल के बाद फिल्म काफी स्ट्रेचेबल लगती है। फिल्म की सिनेमेटोग्राफी अच्छी है और वीएफएक्स वाला लकड़बग्घा कुछ सीन्स में रियल लगता है। फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक औसत दर्जे का है।

परफॉर्मेंस :

परफॉर्मेंस की बात करें तो अंशुमन झा ने ठीक-ठाक काम किया है। रिद्धि डोगरा ने भी बढ़िया काम किया है। फिल्म में रिद्धि काफी खूबसूरत लग रही हैं। नेगेटिव रोल में परेश पहुजा ने भी दमदार अभिनय किया है। मिलिंद सोमन को फिल्म में वेस्ट किया गया है। फिल्म के बाकी सपोर्टिंग कास्ट का अभिनय ठीक है।

ये है कहानी 

कोलकाता का रहने वाला अर्जुन बख्शी (अंशुमान झा) पेशे से कुरियर बॉय है और खाली समय में बच्चों को मार्शल आर्ट्स की ट्रेनिंग देता है। एनिमल लवर अर्जुन कुत्तों से बहुत प्यार करता है। इसी बीच उसका एक कुत्ता (शोंखो) खो गया है। अर्जुन इसी तलाश में क्राइम ब्रांच ऑफिसर (रिद्धी डोगरा) से मिलता है और दोनों को प्यार हो जाता है।

इस दौरान अर्जुन का सामना कुत्तों की तस्करी का काला सच के अलावा और भी कई शॉकिंग चीजों से होता है। क्या अर्जुन को अपना पालतू कुत्ता मिल पाता है। और कुत्तों की कहानी का टाइटिल लकड़बग्घा क्यों रखा गया है। अर्जुन और रिद्दी की लव स्टोरी क्या मोड़ लेती है, यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।

Lakadbaggha Movie Review: अच्छे सबजेक्ट के साथ खराब ट्रीटमेंट

विक्टर मुखर्जी ने लकड़बग्घा के रूप में एक बहुत ही बेहतरीन कहानी चुनी थी, लेकिन उसके एक्जीक्यूशन में बहुत बुरी तरह से फेल होते नजर आए हैं। कुत्तों के प्रति बढ़ते प्यार व इमोशन को भी बखूबी इनकैश किया जा सकता था।  कोलकाता जैसे शहर में कुत्तों की तस्करी कर उसका इस्तेमाल रेस्त्रां में करने वाली बात मीडिया की सुर्खियों में भी रही है। यह एक इंट्रेस्टिंग थ्रिल कहानी हो सकती थी,

लेकिन लकड़बग्घा को देखने के दौरान ना ही आपका डॉग लवर इमोशन जागता है और न ही कुत्तों की तस्करी को जानने में दिलचस्पी बढ़ती है। विक्टर ने हर इमोशन को एक साथ परोसने के चक्कर में पूरी कहानी की बैंड बजा दी है। रिद्धी और अर्जुन की लव-स्टोरी ढूंसी सी लगती है। अंशुमान ब्रूस ली और जैकी चैन की कॉपी करते दिखते हैं और कहीं से एक्शन में वो जान नजर नहीं आती है।

पूरी फ्रेम के दौरान अंशुमान का इमोशन एक सा नजर आता है। इनफैक्ट कुत्तों के प्रति भी वो इमोशनल बॉन्डिंग को पर्दे पर दिखा नहीं पाते हैं। दर्शकों पहले के दस मिनट से फिल्म से डिसकनेक्ट महसूस करने लगते हैं। सीट पर बैठे कर आप बस फिल्म के इंटरवल का ही इंतजार करते रह जाते हैं। एक्शन, ड्रामा, थ्रिल, रोमांस से लबरेज फिल्म में कोई भी इमोशन कन्वे नहीं हो पाया है। 

Lakadbaggha को एडिटिंग की थी तगड़ी जरूरत

कहानी का ट्रीटमेंट इतना कमजोर है कि आप टेक्निकल कितने भी स्ट्रॉन्ग हो जाएं, लेकिन फिल्म को बचा नहीं पाएंगे। फिल्म में हाई वीएफएक्स की बात कही गई थी। वीएफएक्स के नाम पर केवल तीन सीन्स हैं, जो कोई इंपैक्ट नहीं डाल पाते हैं। एडिटिंग टीम को कहानी के लेंथ पर बहुत काम करना चाहिए था। जबरदस्ती ठूंसे गए लव स्टोरी को तो पहले एडिट करने की जरूरत थी। सिनेमैटिकली फिल्म अच्छी है। कहानी इतनी डल है कि आप बैकग्राउंड स्कोर और म्यूजिक तो नोटिस ही नहीं कर पाते हो।

जैकी चैन को कॉपी करते नजर आए अंशुमान

अंशुमान झा इस फिल्म के लिए सबसे मिस-फिट किरदार लगे। पूरी फिल्म में एक सा इमोशन लिए अंशुमान ने बेशक एक्शन व मार्शल आर्ट्स में मेहनत की होगी। काश उतनी ही मेहनत वो अपने इमोशन को करेक्ट करने में करते, तो शायद कुछ आस जग सकती थी। रिद्धी डोगरा ने फिल्म से अपना बॉलीवुड डेब्यू किया है, रिद्धी को अपनी फिल्म की चॉइस पर अलर्ट होकर काम करना चाहिए। फिल्म में वे खूबसूरत लगी हैं और एक्टिंग उन्होंने ठीक ही किया है। मिलिंद सोमन बहुत कम समय के लिए फिल्म थे लेकिन अपना काम बखूबी कर गए। विलेन बने परेश पाहुजा 80वें दशक के विलेन को कॉपी कर ओवर एक्टिंग करते हुए दिखे हैं। 

Lakadbaggha: क्यों देखें 

फिल्म का नाम लकड़बग्घा है लेकिन वो ही पूरी फिल्म से मिसिंग है। हां एक दो बार आपको गेस्ट अपीयरेंस करते दिख जाएंगे। अगर टाइटिल सुनकर फिल्म देखने जा रहे हैं, तो मिसलीड हो सकते हैं। एनिमल लवर्स के लिए यह फिल्म धोखा है। आपको पैसे खर्च करने की जरूरत नहीं है। आप इसे कुछ समय के बाद डिजिटल प्लैटफॉर्म पर देख पाएंगे। 

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